बाराबंकी: बेटे को जिताने की खातिर पुनिया भूले पुरानी सियासी दुश्मनी

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बाराबंकी।  कहते हैं राजनीति में न कोई किसी का हमेशा का दोस्त होता है और न ही हमेशा का दुश्मन। सब कुछ समय पर निर्भर करता है। चुनाव के लिये हुए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के इंडिया गठबंधन ने बाराबंकी और गोंडा लोकसभा सीट पर यह वाक्य एकदम सच साबित कर दिया है। क्योंकि दोनों ही पार्टी के दो दिग्गज नेता जो कभी एक दूसरे के धुर विरोधी थे, आज चुनावी मजबूरी के चलते उनकी दूसरी पीढ़ी एक मंच पर दिखाई पड़ रही है।

हम बात कर रहे हैं सपा के कद्दावर नेता रहे स्व. बेनी प्रसाद वर्मा यानी बाबूजी और कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद और अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले पीएल पुनिया की। जब तक बाबूजी जिंदा रहे, उन्होंने बाराबंकी में पीएल पुनिया का पुरजोर विरोध किया। वह खुले मंच से पुनिया पर बाहरी होने का आरोप लगाते थे। वहीं जवाब में पुनिया भी बेनी बाबू पर जवाबी तीर चलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते थे।

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क्योंकि दोनों की राजनीति की धुरी बाराबंकी से ही जुड़ी थी और वर्चस्व की लड़ाई में दोनों खुद को एकदूसरे से बड़ा साबित करना चाहते थे। लेकिन, पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा से मिली करारी हार के बाद दोनों ही दलों को यह लग गया कि अगर वे मिलकर चुनावी मैदान में उतरें, तभी भाजपा का मुकाबला कर सकते हैं।

शायद इसी वजह से सपा का गढ़ कही जाने वाली बाराबंकी सीट अखिलेश यादव को जिले के नेताओं की इच्छा के खिलाफ जाकर भी कांग्रेस को देनी पड़ी। तो पीएल पुनिया और पूर्व मंत्री राकेश वर्मा को अपने बच्चों को जीत दिलाने के लिये अपनी पुरानी सियासी दुश्मनी तक भुलानी पड़ी। हालांकि इंडिया गठबंधन ने कांग्रेस के तनुज पुनिया को बाराबंकी से तो सपा की श्रेया वर्मा को गोंडा से प्रत्याशी बनाकर एक तीर से दो निशाने भी साधे।

गठबंधन ने कुर्मी और दलित वोट बैंक को अपने पक्ष के होने का भी संदेश दिया है। आज दोनों लोकसभा सीटों का आलम यह है कि कभी एक स्थान पर न दिखने वाले स्व. बेनी प्रसाद वर्मा और डॉ. पीएल की दूसरी पीढ़ी यानी पूर्व मंत्री राकेश वर्मा और तनुज पुनिया बाराबंकी में अक्सर मंच साझा कर रहे हैं। जबकि गोंडा लोकसभा सीट पर खुद डॉ. पीएल पुनिया बेनी बाबू की पोती के लिये जीत का माहौल बना रहे हैं।

दरअसल स्व. बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य होने के साथ ही उत्तर प्रदेश में कुर्मियों के बड़े नेता माने जाते थे। एक समय बाराबंकी में उन्होंने एकक्षत्र राज किया। जातियों में उलझी प्रदेश की राजनीति में किसी दूसरी पार्टी के पास कुर्मी लीडर के तौर पर वर्मा की काट नहीं थी। बाराबंकी से लेकर बहराइच और लखीमपुर तक के कुर्मी वोटों पर उनकी मजबूत पकड़ थी।

ऐसे में बेनी बाबू की पुरानी राजनीतिक जमीं को देखते हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद डॉ पीएल पुनिया एक बात बहुत अच्छे से समझते हैं कि पुत्र तनुज पुनिया को बाराबंकी लोकसभा सीट से जीत दिलाने के लिये उन्हें हर हाल में बाकी वोट बैंकों के साथ कुर्मी मतदाताओं को भी साधना ही होगा। इसी वजह से कभी बेनी को कांग्रेस की गंदगी बताने वाले डॉ. पीएल पुनिया आज उनके कसीदे पढ़ रहे हैं। हालही में हुई जनसभाओं में पीएल पुनिया बेनी बाबू को कर्मयोगी और विकास पुरुष बता रहे हैं।

पुनिया सपा कार्यकर्ताओं को बाबूजी की फौज का सिपाही बताकर अपने पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं। तो वहीं राकेश वर्मा गोंडा में पीएल पुनिया के सहारे दलित वोट बैंक श्रेया वर्मा के पक्ष में लाने में लगे हैं। इसके अलावा मुस्लिम और यादव वोटबैंक को दोनों ही अपने पक्ष में मानकर रहे हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव के नतीजों में बाराबंकी और गोंडा सीट से भाजपा बाजी मारेगी या इंडिया गठबंधन, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

लेकिन इस चुनाव में स्व. बेनी प्रसाद वर्मा और डॉ पीएल पुनिया की दूसरी पीढ़ी की दोस्ती ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सियासत में जनता भले ही नेताओं को स्थाई दोस्त या दुश्मन माने। लेकिन अपना फायदा दिखते ही वही नेता अपने सारे पुराने गिले शिकवे भूलकर किसी से साथ भी हाथ मिला सकते हैं। 

कांग्रेस छोड़ने के बाद स्व. बेनी प्रसाद वर्मा को लेकर पुनिया का चर्चित बयान

कांग्रेस से वापस सपा में जाने के बाद डॉ. पीएल पुनिया ने कहा था कि बेनी कांग्रेस से नहीं गए, बल्कि गंदगी चली गई। आस्तीन के सांपों का चला जाना ही ठीक है। वह कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डाल रहे थे। उनके जाने से कांग्रेस खिलेगी। बेनी प्रसाद वर्मा का कुर्मियों में कोई प्रभाव नहीं है। कुर्मी समाज किसी के कहने भर से फैसले नहीं लेता। वह अपने पुत्र को कुर्मी बाहुल्य इलाके से भी चुनाव नहीं जिता पाए।

पीएल पुनिया को लेकर बेनी प्रसाद वर्मा का चर्चित बयान

जिले में राजनीतिक वर्चस्व को लेकर अक्सर दोनों नेताओं के बीच तनातनी रहती थी। स्व. बेनी प्रसाद वर्मा खुली सभा से कई बार कह चुके थे पीएल पुनिया पंजाब से आए हैं। बाराबंकी में बाहरियों का कोई काम नहीं। उनका बाराबंकी से कोई लेना-देना नहीं। यहां के सब लोग हमारे साथ हैं। बेनी बाबू के इन बयानों के बाद जिले से लेकर दिल्ली तक की राजनीति भी कई बार गर्माती देखी गई थी।

बाराबंकी की सियासत को काफी नजदीक से समझने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता दयाशंकर श्रीवास्तव का कहना है कि भारतीय राजनीति उतनी सीधी सपाट नहीं है, जितनी दिखाई पड़ती है। वह जलेबी जैसी गोल और उलझी हुई है। विचारधारा, सामाजिक-न्याय, जनता की सेवा और कट्टर ईमानदारी जैसे जुमले अपनी जगह हैं।

लेकिन समय के साथ किसी को दोस्त और किसी को दुश्मन बनाना अच्छे और सफल राजनेता की असली पहचान होती है। स्व. बेनी बाबू ने अपनी जिंदगी में हमेशा दो कदम आगे की सोची। वहीं पीएल पुनिया का भी बड़ा राजनीतिक अनुभव है। ऐसे में दोनों की दूसरी पीढ़ी के साथ आने को भले ही कोई राजनीतिक मजबूरी कहे, लेकिन शायद दोनों को समय की यही मांग दिख रही होगी।

 

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