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बलिया में पीने के पानी की किल्लत है और लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने को मजबूर हैं.
विश्व जल दिवस का महत्व तभी है जब हर बूंद का संरक्षण हो। उद्योगों के अत्यधिक दोहन, घर-घर टुल्लू लगाने, पानी के पंपों के बढ़ने से न केवल खपत बढ़ी है
बलिया की जनता को शुद्ध और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का सरकार का दावा विफल साबित हुआ है. 310 गांवों के भूजल में आर्सेनिक की पुष्टि के वर्षों बाद भी लोगों को शुद्ध पेयजल नहीं मिल रहा है. जल निगम 40 योजनाओं पर काम कर रहा है। लेकिन पिछले 2 वर्षों में परियोजना से केवल सांवरूपुर और मिर्ची खुर्द की आपूर्ति की गई, लगभग 6 हजार की आबादी को शुद्ध पेयजल मिला. बाकी का कहीं पता नहीं है।
वहीं अमरनाथ मिश्रा पीजी कॉलेज दुबेछपरा के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डॉ. गणेश पाठक का कहना है कि सरकार के साथ-साथ सभी को भूजल को बचाने के लिए अपने स्तर पर भरसक प्रयास करना चाहिए. पिछले दो वर्षों में जल संरक्षण के लिए कुल 34 तालाबों का निर्माण किया गया। भूविज्ञान विभाग द्वारा रसड़ा क्षेत्र में दो बड़े वाटरशेड बनाने की संस्तुति की गई थी। पानी की बर्बादी रोकनी चाहिए।
विश्व जल दिवस का महत्व तभी है जब हर बूंद का संरक्षण हो। उद्योगों के अत्यधिक दोहन, घर-घर टुल्लू लगाने, पानी के पंपों के बढ़ने से न केवल खपत बढ़ी है बल्कि पानी की बर्बादी भी हो रही है। जागरूकता और विभिन्न कार्यक्रमों के बावजूद पानी की बर्बादी को नियंत्रित नहीं किया जा रहा है। अनावश्यक पानी की बर्बादी को रोकना होगा।