सरयू नदी के लहरों का तांडव जारी, एक मकान को लिया अपने आगोश में

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सुरेमनपुर (बलिया)। सुरेमनपुर के उत्तरी दियरांचल में इस साल भी कटान बस्तूर जारी है। सरयू नदी के कटान से सिवाल मठिया, गोपाल नगर, वशिष्ठ नगर, मानगढ़ के लोगों में भय का माहौल कायम है। इस कटान से लगभग चालीस हजार आबादी हर साल परेशान होती है। लेकिन सरकार के तरफ से इसका कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हो रहा है। घाघरा नदी की विभीषिका झेलना तटवर्तीय लोगों केलिए आम बात हो गई हैं। कटान से खासा नुकसान कृषि उपजाऊ भूमि की होती है। हर साल सैकड़ों बीघा उपजाऊ भूमि घाघरा नदी में समाहित हो जाती है। इसको देखते हुए डरे सहमे तटवर्तीय क्षेत्र सैकड़ों परिवार हर साल नदी के कटान से पलायन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। किसी तरह से लोग अपने रहने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई से आशियाना बनाते हैं। जिसको नदी क्षण भर में अपने आगोश में ले लेती है। जिससे फिर से परिवार खुले आसमान के नीचे आ जाते है।

शनिवार को सुरेश यादव की मकान उनके आंखों के सामने नदी में समाहित हो गई। जिसको देख सुरेश दहाड़े मार कर रोने लगे और कहने लगे कि अब तो फिर घर बनना मेरे लिए एक सपना के समान है। उधर कटान दिन प्रतिदिन अपना भयानक रूप लेती जा रही है। लोग पूरी रात डर और भय के कारण सो नहीं पा रहे हैं। वही कटान से निजात की स्थाई व्यवस्था न तो शासन से हो पा रही नाही बाढ़ विभाग कर पा रहा है। जब बाढ़ का समय आता है, तो प्रशासन अपनी करवाई तेज कर देता है। बाढ़ के पहले ही तैयारियां हो जाती तो किसानों का नुकसान नहीं होता। लेकिन इसका कोई प्रबंध नहीं होता है। जब घाघरा नदी में बाढ़ आ जाती है, तो शासन प्रशासन मुख दर्शक बनकर रह जाता है। जिसके कारण कृषि योग्य भूमि हर साल बाढ़ के कटान में हजारों बीघा नदी में समाहित हो जाती है। बाढ़ पीड़ित के लिए एक सरकारी विद्यालय पर रहने की व्यवस्था की गई है, लेकिन गांव के लोगों का कहना है की जगह कम होने की वजह से माल मवेशी लेकर रहना वहां मुश्किल हो रहा है। जिससे लोग रोड के किनारे झुग्गी झोपड़ी लगाकर रहने को मजबूर हैं।

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