Nitish Kumar: सबसे अधिक बार मुख्यमंत्री बनने का बनाया रिकॉर्ड, इंजीनियरिंग से राजनीति तक ऐसा रहा सफर

जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष नीतीश कुमार 9वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए हैं. इसके साथ उन्होंने सबसे अधिक बार सीएम बनने का रिकॉर्ड भी बना लिया है. राजद के साथ गठबंधन समाप्त करने के बाद उन्होंने एनडीए के साथ मिलकर नई सरकार बनाई.

नीतीश सबसे अधिक बार बने सीएम, लेकिन उनकी पार्टी को बिहार में कभी नहीं मिली बहुमत

यह भी पढ़े - बिहार में 4 सीटों पर उपचुनाव 13 नवंबर को, 23 नवंबर को नतीजे

नीतीश कुमार ने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है, जिन्होंने सबसे लंबे समय तक बिहार में शासन किया, जबकि उनकी पार्टी कभी भी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई. इस उपलब्धि के पीछे छिपा हुआ तथ्य और उनका राजनीतिक कौशल यह है कि नीतीश (72) कभी भी अपने सहयोगियों के साथ सहज नहीं रह सके, जिसके कारण उन्हें कई बार साझेदार बदलने पड़े.

स्वतंत्रता सेनानी के घर हुआ नीतीश कुमार का जन्म

एक मार्च, 1951 को पटना के बाहरी इलाके बख्तियारपुर में एक आयुर्वेदिक चिकित्सक-सह-स्वतंत्रता सेनानी के घर जन्मे नीतीश ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद जेपी आंदोलन से जुड़े नीतीश कुमार

पटना के बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज (अब राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) से पढ़ाई करने के समय नीतीश छात्र राजनीति में आए और ‘जेपी आंदोलन’ से जुड़े. इस आंदोलन में शामिल लालू प्रसाद और सुशील कुमार मोदी सहित अपने कई सहयोगियों से उनकी नजदीकी बढ़ी. फिर वह पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष और महासचिव बने.

1985 में पहली बार विधायक बने थे नीतीश कुमार

नीतीश को पहली चुनावी सफलता 1985 के विधानसभा चुनाव में मिली, जिसमें कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की, हालांकि वह लोकदल के लिए हरनौत सीट जीतने में कामयाब रहे. पांच साल बाद, वह बाढ़ सीट (अब समाप्त कर दी गई) से सांसद चुने गए. इसके बाद, जब मंडल लहर अपने चरम पर थी और प्रसाद इसका लाभ उठा रहे थे, नीतीश ने जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई, जो बाद में जनता दल (यूनाइटेड) में तब्दील हो गई. जद(यू) ने भाजपा के साथ केंद्र में सत्ता साझा की और, फिर 2005 से राज्य में सत्ता संभाली.

नीतीश कुमार के पहले पांच वर्षों के काम को आलोचकों भी करते हैं याद

मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश के पहले पांच वर्षों को उनके आलोचकों द्वारा भी प्रशंसा के साथ याद किया जाता है क्योंकि नीतीश ने बिहार में कानून और व्यवस्था को मजबूत किया, जो आपराधिक घटनाओं और फिरौती के वास्ते अपहरण के लिए अक्सर चर्चा रहता था. मंडल आयोग की लहर में उभरे कुर्मी नेता को यह भी एहसास हुआ कि वह बहुत अधिक आबादी वाले जाति से ताल्लुक नहीं रखते, जिसके बाद उन्होंने ओबीसी और दलितों के बीच उप-कोटा बनाया, जिन्हें अति पिछड़ा (ईबीसी) और महादलित कहा गया. उनका यह निर्णय प्रमुख जाति समूहों -यादव और पासवान के समर्थकों को नागवार गुजरा.

2013 में नीतीश बीजेपी से हुए थे अलग

वर्ष 2013 में भाजपा से अलग होने के बाद भी नीतीश सत्ता में बने रहे क्योंकि उस समय बहुमत के आंकड़े से कुछ ही सदस्य कम रही जद(यू) को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के असंतुष्ट गुट के अलावा कांग्रेस और भाकपा जैसी पार्टियों से बाहर से समर्थन मिला. हालांकि, एक साल बाद, उन्होंने लोकसभा चुनाव में जद(यू) की हार के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ दिया. एक साल से भी कम समय में उन्होंने जीतन राम मांझी को हटाकर मुख्यमंत्री के रूप में वापसी की और इस बार उन्हें राजद और कांग्रेस का भरपूर समर्थन मिला.

2017 में फिर एनडीए में लौटे नीतीश कुमार

जद(यू), कांग्रेस और राजद के एक साथ आने से अस्तित्व में आए ‘महागठबंधन’ ने 2015 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की, लेकिन केवल दो वर्षों में इसमें दरार पड़ गई. कुमार 2017 में भाजपा नीत राजग में लौट आए.

2022 में फिर बीजेपी से नीतीश कुमार का हुआ मोहभंग

पांच साल बाद, उनका फिर से भाजपा से मोहभंग हो गया और उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में जद(यू) की हार के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया क्योंकि चिराग पासवान ने अपनी लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर भाजपा के कई बागियों को मैदान में उतारा था. अगस्त 2022 में वह महागठबंधन में वापस आए, जिसमें तीन वामपंथी दल भी शामिल हैं.

Edited By: Ballia Tak

खबरें और भी हैं

Copyright (c) Ballia Tak All Rights Reserved.
Powered By Vedanta Software