Death Anniversary: सिनेमा जगत के युगपुरूष थे Tarachand Barjatya, इनके प्रोडक्शन में बनी हैं बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्में

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मुंबई। सिनेमा जगत के युगपुरुष तारा चंद बडज़ात्या का नाम एक ऐसे फिल्मकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने पारिवारिक और साफ सुथरी फिल्म बनाकर लगभग चार दशकों तक सिने दर्शकों के दिल में अपनी खास पहचान बनाई। फिल्म जगत में सेठजी के नाम से मशहूर महान निर्माता ताराचंद बडज़ात्या का जन्म राजस्थान में एक मध्यम वर्गीय परिवार में 10 मई 1914 को हुआ था।

ताराचंद ने अपनी स्नातक की शिक्षा कोलकाता के विधासागर कॉलेज से पूरी की। उनके पिता चाहते थे कि वह पढ़ लिखकर बैरिस्टर बने लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति खराब रहने के कारण ताराचंद को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ी। वर्ष 1933 में ताराचंद नौकरी की तलाश में मुंबई पहुंचे मुंबई में वह मोती महल थियेटर्स प्राइवेट लिमिटेड नामक फिल्म वितरण संस्था से जुड़ गए। यहां उन्हें पारश्रमिक के तौर पर 85 रुपए मिलते थे। वर्ष 1939 में उनके काम से खुश होकर वितरण संस्था ने उन्हें महाप्रबंधक के पद पर नियुक्त करके मद्रास भेज दिया ।

मद्रास पहुंचने के बाद ताराचंद और अधिक परिश्रम के साथ काम करने लगे। उन्होंने वहां के कई निर्माताओं से मुलाकात की और अपनी संस्था के लिए वितरण के सारे अधिकार खरीद लिए।  मोती महल थियेटर्स के मालिक उनके काम को देख काफी खुश हुए और उन्हें स्वंय की वितरण संस्था शुरू करने के लिए उन्होंने प्रेरित किया। इसके साथ ही उनकी आर्थिक सहायता करने का भी वायदा किया। ताराचंद को यह बात जच गई और उन्होंने अपनी खुद की वितरण संस्था खोलने का निश्चय किया।

15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ तो इसी दिन उन्होंने राजश्री नाम से वितरण संस्था की शुरूआत की। वितरण व्यवसाय के लिए उन्होंने जो पहली फिल्म खरीदी वह थी चंद्रलेखा। जैमिनी स्टूडियो के बैनर तले बनी यह फिल्म काफी सुपरहिट हुई जिससे उन्हें काफी फायदा हुआ।  इसके बाद वह जैमिनी के स्थाई वितरक बन गए। इसके बाद ताराचंद ने दक्षिण भारत के कई अन्य निर्माताओं को हिन्दी फिल्म बनाने के लिए भी प्रेरित किया।अंजली, वीनस, पक्षी राज और प्रसाद प्रोडक्शन जैसी फिल्म निर्माण संस्थाएं उनके ही सहयोग से हिन्दी फिल्म निर्माण की ओर अग्रसर हुई और बाद में काफी सफल भी हुईं।

इसके बाद ताराचंद फिल्म प्रर्दशन के क्षेत्र से भी जुड़ गए जिससे उन्हें काफी फायदा हुआ। उन्होंने कई शहरों में सिनेमा हॉल का निर्माण किया। फिल्म वितरण के साथ-साथ उनका यह सपना भी था कि वह छोटे बजट की पारिवारिक फिल्मों का निर्माण भी करें। वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म आरती के जरिए उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। फिल्म आरती की सफलता के बाद बतौर निर्माता वह फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। इस फिल्म से जुड़ा रोचक तथ्य है कि इस फिल्म के लिए अभिनेता संजीव कुमार ने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नहीं हो सके थे।ताराचंद के मन में यह बात हमेशा आती थी कि नए कलाकारों को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित होने का समुचित अवसर नहीं मिल पाता है।

उन्होंने यह संकल्प किया कि वह अपनी फिल्मों के माध्यम से नए कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का ज्यादा से ज्यादा मौका देंगे।  वर्ष 1964 में इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्म दोस्ती का निर्माण किया जिसमें उन्होंने अभिनेता संजय खान को फिल्म इंडस्ट्री के रूपहले पर्दे पर पेश किया। दोस्ती के रिश्ते पर आधारित इस फिल्म ने न सिर्फ सफलता के नए आयाम स्थापित किए बल्कि अभिनेता संजय खान के करियर को भी एक नई दिशा दी। इस फिल्म का यह गीत चाहूंगा तुझे मै सांझ सवेरे आज भी श्रोतओं के बीच काफी लोकप्रिय है। अभिनेता संजय खान के अलावा कई अन्य अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के सिने करियर को संवारने में भी ताराचंद का अहम योगदान रहा है। 

जिनमें सचिन-सारिका को गीत गाता चल, अमोल पालेकर-जरीना वहाब को चितचोर, रंजीता को अंखियों के झरोके से, राखी को जीवन मृत्यु, अरुण गोविल को सावन को आने दो, रामेश्वरी को दुल्हन वही जो पिया मन भाए, सलमान खान-भाग्यश्री को मैने प्यार किया से ब्रेक देकर उन्हें बॉलीवुड में स्थापित किया।ताराचंद को मिले सम्मानों को देखा जाए तो उन्हें अपनी निर्मित फिल्म के लिए दो बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ फिल्मकार से नवाजा गया है। अपनी निर्मित फिल्मों से लगभग चार दशक तक दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने वाले महान फिल्माकार ताराचंद बडज़ात्या 21 सितंबर 1992 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।  

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