- Hindi News
- संपादकीय
- ऊर्जा में आत्मनिर्भरता
ऊर्जा में आत्मनिर्भरता
बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के चलते भारत 2030 तक दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता के रूप में यूरोपीय संघ से आगे निकल जाएगा। यानि भारत में वैश्विक स्तर पर किसी भी देश की तुलना में सबसे अधिक ऊर्जा मांग वृद्धि होने की उम्मीद है।
इस योजना में बिजली की पहुंच और देश की जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धता की पूरी गतिकी को बदल देने की क्षमता है। करीब एक करोड़ घरों को शामिल करने की संभावना वाली इस योजना के लाभार्थियों को हर महीने 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी।
इससे गरीब और मध्यम वर्ग का बिजली का बिल तो कम होगा ही, वहीं भारत उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भी बनेगा। इस योजना के माध्यम से, शामिल घर बिजली बिल बचाने के साथ-साथ डिस्कॉम को अधिशेष बिजली की बिक्री के माध्यम से अतिरिक्त आय अर्जित करने में सक्षम होंगे। तीन किलोवाट क्षमता वाली एक प्रणाली एक घर के लिए औसतन प्रति माह 300 से अधिक यूनिट उत्पन्न करने में सक्षम होगी।
प्रस्तावित योजना के परिणामस्वरूप आवासीय क्षेत्र में छत पर स्थापित सौर ऊर्जा के माध्यम से 30 गीगावॉट की सौर क्षमता की बढ़ोतरी होगी, जिससे 1000 बीयू बिजली पैदा होगी और छत पर स्थापित सौर ऊर्जा प्रणाली के 25 साल के जीवनकाल में 720 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन में कमी आएगी।
अनुमान है कि यह योजना विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स, आपूर्ति श्रृंखला, बिक्री, स्थापना, ओएंडएम और अन्य सेवाओं में लगभग 17 लाख प्रत्यक्ष नौकरियां पैदा करेगी।
करीब एक करोड़ गरीबों से लेकर मध्यम वर्ग के परिवारों को छत पर सोलर पैनलों से लैस करके, इस योजना का लक्ष्य पारंपरिक बिजली ग्रिडों पर उनकी निर्भरता को कम करना है। सार्वजनिक आंकड़ों से पता चलता है कि पूरे भारत में बिजली की औसत घरेलू खपत लगभग 100 यूनिट प्रति माह है, दिल्ली जैसे कुछ ही राज्यों में यह 300 यूनिट के करीब है।
हालांकि नई सूर्य घर योजना पिछली योजनाओं के मुकाबले बेहतर लग रही है। जब तक सरकार बिजली वितरण कंपनियों की आपूर्ति और कीमत निर्धारण जैसी संरचनात्मक समस्याओं का समाधान नहीं करती, तब तक एक करोड़ घरों तक इसे पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा। फिर भी इस योजना के कार्यान्वयन के साथ ऐसे भविष्य की आशा की जा सकती हैं, जहां भारत नवीकरणीय उर्जा में वैश्विक लीडर बन जाएगा।