शुरुआत से पहले ही दबाव

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केंद्र में सरकार गठन की कवायद के बीच शुरूआत से पहले ही भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दलों ने दबाव की राजनीति शुरु दी है। सत्ता की बिसात पर सहयोगी दल अपनी-अपनी चाल चल रहे हैं। इससे आने वाले समय में नरेंद्र मोदी के लिए पहली बार गठबंधन सरकार चलाने में ज्यादा मेहनत करने की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता। 

गौरतलब है 543 सीटों पर हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 293 सीटें जीतीं हैं। भाजपा ने 240, तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने 16 और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने 12 सीटें जीती हैं। ऐसे में नीतीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी प्रमुख भूमिका में आ गए हैं। गुरुवार को जेडीयू ने अग्निवीर योजना की समीक्षा करने की बात सार्वजनिक तौर पर कही है। जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि अग्निवीर योजना को लेकर बहुत विरोध हुआ था और चुनाव में भी उसका असर देखने को मिला है।

इस पर विचार करने की जरूरत है। इसके बाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने जेडीयू की इस मांग के प्रति अपना विरोध जताया है। उन्होंने कहा अग्निवीर योजना की समीक्षा की बात करनी ही थी तो एनडीए की बैठक में ही की जानी चाहिए थी। इस तरह से सार्वजनिक बात करना गठबंधन धर्म के खिलाफ है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कथित तौर पर अपनी पार्टी के लिए दो मंत्रालयों की मांग कर रहे हैं। 

उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र ही वह राज्य है, जहां पर भाजपा को चुनाव में बड़े झटके का सामना करना पड़ा है। भाजपा को इस बार महाराष्ट्र में कांग्रेस से भी कम सीटें मिली हैं। भाजपा को नौ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। वहीं कांग्रेस को 13 सीटों पर जीत हासिल हुई है। साफ हो गया है कि स्पष्ट बहुमत न मिलने की वजह से सरकार चलाने के लिए भाजपा को अपने सहयोगियों पर काफी हद तक निर्भर रहना पड़ेगा। 

ऐसे में भाजपा को राष्ट्र के प्रति अपने दृष्टिकोण में अधिक समावेशी और रचनात्मक होने की आवश्यकता है। मतदाताओं के फैसले से भी यही संकेत मिल रहे हैं। समान नागरिक संहिता समेत कोई भी नीति लाने से पहले तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री को अपने सहयोगियों के साथ सामाजिक-आर्थिक एजेंडा को ध्यान में रखते हुए सहमति बनानी होगी।

चुनाव परिणाम भाजपा को जवाबदेह बनाता है और मांग करता है कि वह और अधिक रचनात्मक हो। भाजपा को लोकतांत्रिक भावना से उस संदेश पर ध्यान देना चाहिए। लोगों का फैसला इससे अधिक स्पष्ट नहीं हो सकता कि भाजपा भारत के विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों की राजनीतिक आकांक्षाओं के प्रति अधिक सौहार्दपूर्ण और कम टकराव वाली हो।

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