धनशोधन में संलिप्तता

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प्रतिबंध के बावजूद पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) देश के कई राज्यों में अपना विस्तार करने के प्रयास में है। पिछले दिनों  राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मेरठ, अहमदाबाद और राजस्थान-गुजरात सीमा से सटे कई इलाकों में छापेमारे की। पता चला कि पीएफआई इन क्षेत्रों में अपना विस्तार करने की फिराक में था।

शनिवार को केरल के कोल्लम में पीएफआई के कार्यकर्ताओं द्वारा सेना के जवान के साथ बदसलूकी करने का मामला सामने आया है। सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने प्रतिबंधित इस्लामी संगठन ‘पीएफआई  से जुड़े धन शोधन के मामलों में केरल में कई स्थानों पर छापे मारे। बड़ी बात है कि संगठन पर प्रतिबंध के बाद भी संदिग्ध वित्तीय लेनदेन होते रहे। जब ईडी ने आगे जांच की तो पता चला कि पैसा हवाला के जरिए पीएफआई नेताओं तक पहुंच रहा था।

पीएफआई के स्लीपर सेल राज्य में सक्रिय थे। समझा जाता है कि प्रवर्तन निदेशालय कथित आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े वित्तीय लेनदेन के संबंध में जांच कर रहा है। वर्ष 2006 में अपनी स्थापना के बाद से एक संगठन के तौर पर पीएफआई का काफी विस्तार हुआ।  पिछले वर्ष 27 सितंबर को गृह मंत्रालाय द्वारा जारी अधिसूचना में पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों को  गैरकानूनी संगठन करार दिया गया।

कहा गया कि ये लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए, समाज के एक वर्ग विशेष को चरमपंथी बनाने का एक गुप्त एजेंडा चला रहे थे। सरकार ने इसे अलगाववाद और सांप्रदायिकता की राजनीति का प्रचार करने वाला संगठन करार दिया। जबकि संगठन के दावे के मुताबिक इसने देश भर के मुस्लिमों के हित में सामाजिक और न्यायिक गतिविधियों में हिस्सा लिया है जो संवैधानिक मूल्यों के मुताबिक है।

देखा जाए तो प्रतिबंध - अक्सर उन संगठनों से निपटने के लिए लगाया जाता है जो लगातार गैरकानूनी गतिविधियों का सहारा लेते हैं और शांति, सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं। स्थानीय प्रशासन अक्सर इन समस्याओं से निपटने में विफल रहते हैं। कहा जा सकता  है कि प्रतिबंध संगठनों को सार्वजनिक दृष्टि से दूर कर देते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। कई लोग सहानुभूति जगाते हैं या भूमिगत हो जाते हैं।

एनआईए ने इस महीने की शुरुआत में भी पीएफआई मामले में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में 40 जगहों पर छापेमारी की थी। वास्तव में राष्ट्रीय अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता और इन लक्ष्यों को सुरक्षित करने के लिए प्रतिबंध को जमीनी स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।

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