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ऐतिहासिक शांति समझौता
पूर्वोत्तर को हिंसा मुक्त करने के लिए केंद्र सरकार बीते एक साल से लगातार यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के साथ बातचीत कर रही थी, लेकिन अब जाकर यह कोशिश सफल हुई है। वास्तव में शुक्रवार असम के लोगों के लिए बहुत बड़ा दिन है। क्योंकि असम का सबसे पुराना उग्रवादी संगठन उल्फा हिंसा छोड़ने और संगठन को भंग करने पर सहमत हो गया।
बताया जाता है कि बरुआ म्यांमार में हैं। ध्यान रहे वर्ष 1979 में संप्रभु असम की मांग को लेकर गठित हुए उल्फा संगठन ने असम समेत कई राज्यों में हिंसा फैला रखी थी। केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया। वर्ष 1979 से अब तक 10,000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
केंद्र ने इस साल अप्रैल में वार्ता समर्थक गुट को एक मसौदा समझौता भेजा था, जो 2011 में समूह द्वारा हिंसा छोड़ने और बिना किसी पूर्व शर्त के बातचीत के लिए बैठने पर सहमत होने के बाद तैयार किया गया पहला व्यापक मसौदा था। अगस्त में दिल्ली में गुट के नेताओं और केंद्र सरकार के बीच बैठक हुई थी। फरवरी 2011 में, उल्फा दो समूहों में विभाजित हो गया-एक समूह का नेतृत्व अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा ने किया जिसने अपने हिंसक अतीत को छोड़ने और बिना किसी शर्त के केंद्र के साथ बातचीत करने का फैसला किया और दूसरे का नेतृत्व कमांडर-इन-चीफ परेश बरुआ ने किया जिसने बातचीत के खिलाफ फैसला किया।
शांति समझौते के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा उल्फा के साथ हुए समझौते को पूरी तरह से लागू किया जाएगा। असम को बड़ा विकास पैकेज दिया जाएगा। समझौते में स्वदेशी लोगों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार प्रदान करने के अलावा, असम से संबंधित कई लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक,आर्थिक और सामाजिक मुद्दों का ध्यान रखा गया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा की उपस्थिति में हुआ यह समझौता पूर्वोत्तर में शांति बहाली की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा। असम के लोगों के हित में हुए समझौते से पूर्वोत्तर में दशकों पुरानी हिंसा का अंत होगा।