वैश्विक चिंताओं के बीच

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चीन का बढ़ता वर्चस्व हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। इससे इस क्षेत्र में सैन्य खर्च बढ़ गया है। दिल्ली में आयोजित हिंद-प्रशांत वैश्विक सेना प्रमुख सम्मेलन (आईपीएसीसी) में मंगलवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह क्षेत्र सीमा विवाद और समुद्री डकैती जैसी जटिल सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है।

अमेरिका के सेना प्रमुख जनरल रैंडी जॉर्ज ने कहा-दुनिया में युद्ध का तरीका बदल रहा है। सम्मेलन में शामिल देशों के बीच सैन्य समेत हर स्तर पर सहयोग मजबूत करना होगा। गौरतलब है कि सम्मेलन का मकसद आपसी समझ, संवाद और मित्रता के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना है।

आयोजन भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की सेनाएं मिलकर कर रही हैं। इसमें 22 देशों के सेना प्रमुख भाग ले रहे हैं। वास्तव में चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत के हितों और स्थिरता के लिए चुनौती रहा है। भारत-प्रशांत क्षेत्र दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है जिसमें एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका महाद्वीप शामिल हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विश्व भू क्षेत्र का 44 प्रतिशत हिस्सा है।

इसमें विश्व जनसंख्या का 65 प्रतिशत हिस्सा, विश्व जीडीपी का 62 प्रतिशत भाग है और यह विश्व के 46 प्रतिशत व्यापारिक माल के व्यापार में योगदान देता है। माना जाता है कि दक्षिण चीन सागर/ प्रशांत महासागर के रास्ते लगभग 3.5 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार होता है। सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं और भारत के व्यापारिक साझेदार अमेरिका, चीन, कोरिया और जापान का समग्र व्यापार दक्षिण चीन सागर/प्रशांत क्षेत्र से होता है।

भारत के व्यापार का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में केंद्रित है। हिंद महासागर में भारत का 90 प्रतिशत कारोबार होता है और इसका 90 प्रतिशत ऊर्जा स्रोत है। यह क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक बड़ा स्रोत और गंतव्य है।  

उधर चीन इस क्षेत्र को एशिया-प्रशांत क्षेत्र मानता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विचार को मान्यता नहीं प्रदान करता है। दक्षिण चीन सागर में अपने हितों को आक्रामक रूप से साधते हुए चीन हिंद महासागर क्षेत्र को अपनी बेल्ट और रोड पहल में एक महत्वपूर्ण संघटक के रूप में देखता है। हिंद-प्रशांत के लिए भारत का दृष्टिकोण सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर जोर देता है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ वहां के लोगों के बीच संपर्क में बढ़ोतरी और अपनी उदार शक्ति का प्रदर्शन करके भारत ने बेहतर कार्य किया है। इन मुद्दों को अधिक ऊर्जा और प्रतिबद्धता के साथ उठाने की आवश्यकता है ताकि भारत संवृद्धि और विकास में समर्थ हो सके और इसकी अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सके।

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