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कब रुकेगा सिलसिला
म्यांमार सीमा के पास पूर्वोत्तर के मणिपुर के मोरेह शहर में पिछले साल 30 दिसंबर से सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच हो रही गोलीबारी पूरे देश के लिए चिंता की बात है। मोरेह में मंगलवार को संदिग्ध कुकी उग्रवादियों के हमले में पुलिस के चार जवान और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का एक जवान गंभीर रूप से घायल हो गए। 1 जनवरी से कुकी आतंकवादी आरपीजी, मोर्टार और स्नाइपर्स का उपयोग करके सुरक्षा कर्मियों पर हमला कर रहे हैं। राज्य को अस्थिर करने के प्रयास में राज्य बलों पर हो रहे हमले राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं। घटना से पूरे राज्य में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है।
वहां स्थिति शांत लेकिन तनावपूर्ण बनी हुई है। ध्यान रहे मई में उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद मणिपुर में अराजकता और अनियंत्रित हिंसा भड़क उठी, जिसमें राज्य सरकार को गैर-आदिवासी मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया गया था। इसके आदिवासी कुकी और गैर-आदिवासी मेइती समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर जातीय झड़पें हुईं। 3 मई को राज्य में पहली बार भड़की जातीय हिंसा के बाद से 180 से अधिक लोग मारे गए हैं और कई सौ अन्य घायल हुए हैं।
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 फीसदी है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासी-नगा और कुकी 40 प्रतिशत से कुछ ज्यादा हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि आठ महीने से मणिपुर के लोग हत्या, हिंसा और तबाही झेल रहे हैं। आखिर यह सिलसिला कब रुकेगा। जानकारों के मुताबिक राज्य में फैली हिंसा ने सह-अस्तित्व और विकास को बाधित किया है। मणिपुर से जुड़े कई मुद्दों की उत्पत्ति कुछ हद तक इतिहास में है।
इसलिए समस्या के समाधान के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह और समुदायों के बीच जातीय संघर्ष रोकना केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। दीर्घकालिक और स्थायी समाधान के लिए सभी पक्षों से बातचीत करके, उन्हें विश्वास में लेकर, स्थिरता और शांति लाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।