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हड़ताल और प्रदर्शन
चुनावों से पहले अपनी मांगों को लेकर आंदोलन, हड़ताल और प्रदर्शन करना कोई नई बात नहीं है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि यह तरीका संविधान सम्मत नहीं है। बीते दो दिनों से पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसान अपनी मांगों को लेकर लामबंद हैं और दिल्ली की तरफ बढ़ने की बराबर कोशिश कर रहें हैं।
यहां इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि किसान आंदोलन की आड़ में ऐसे तत्व भी अपनी जमीन तलाश रहें हैं जिनका मंसूबा हमेशा से देश को अस्थिर करने का रहा है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि 2021 में कृषि कानून के विरोध में आंदोलन चल रहा था, तब 26 जनवरी को दिल्ली के कई इलाकों खासकर लालकिला पर खूनी हिंसा का खेल खेला गया था जिसमें पुलिस अधिकरियों समेत कई जवान हिंसा का शिकार हुए थे।
आंदोलित किसान एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी के अलावा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि ऋ ण माफी, पुलिस मामलों को वापस लेने और लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए ‘न्याय’ की मांग कर रहे हैं।
हालांकि मंगलवार को कृषि मंत्री अनुराग ठाकुर की किसानों से वार्ता हुई, लेकिन वार्ता किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी। यहां एमएसपी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों आदि मांगों से सहमत हुआ जा सकता है, लेकिन कृषि ऋ ण माफी और पेंशन की मांग से सहमत नहीं हुआ जा सकता है।
क्योंकि पूर्व में अनेक ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें कृषि ऋ ण माफी की आड़ में किसानों द्वारा बड़ी मात्रा में कृषि कार्यों के नाम पर कर्ज लिया गया, लेकिन उसका उपयोग कृषि कार्यों में न करके व्यक्ति कार्यों में किया जाने लगा। इस तरह कृषि ऋ ण को उपभोग की वस्तु बना लिया गया है।
इसी प्रकार पेंशन संबंधी मांग से भी सहमत नहीं हुआ जा सकता है, क्योंकि खेती एक व्यावसायिक कार्य है, जो निरंतर चलता है। साथ ही एक बात और गौरतलब है कि किसानों की आय पर किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं है। वर्तमान में हो रहे किसान आंदोलन से दिल्ली और आसपास के इलाकों में जाम की समस्या शुरू हो चुकी है जिससे जनजीवन तो प्रभावित हो रहा है, साथ ही व्यापारिक गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं। आंदोलनरत किसानों को समझना होगा कि वे अपना प्रदर्शन बेशक जारी रखें, लेकिन देश की संपत्ति और जनमानस को प्रभावित किए बिना प्रदर्शन करें।