ड्रोन रोधी प्रणाली

हाल के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर ड्रोन घुसपैठ के रूप में एक नई चुनौती सामने आई है। पिछले तीन वर्षों में ड्रोन घुसपैठ की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में ड्रोन या मानवरहित विमान (यूएवी) का उपयोग करके पाकिस्तान से भेजे गए हथियारों, गोला-बारूद और मादक पदार्थों को गिराया जाना कई वर्षों से सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी समस्या रही है।

महत्वपूर्ण है कि भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय  सीमाओं पर ड्रोन उपकरणों से बढ़ते खतरे को विफल करने के लिए भारत स्वदेशी ड्रोन रोधी तकनीक विकसित कर रहा है जो जल्द ही सुरक्षा बलों को उपलब्ध कराई जाएगी। सुरक्षा एजेंसियां ड्रोन-रोधी प्रौद्योगिकी की तीन डिजाइन पर काम कर रही हैं।

सेना के एक अधिकारी के मुताबिक नई प्रौद्योगिकी का परीक्षण चल रहा है और यह अंतिम चरण में है। गौरतलब है कि भारत अपनी रणनीतिक और रक्षा आवश्यकताओं से प्रेरित होकर स्वदेशी ड्रोन प्रौद्योगिकियों के विकास में सक्रिय रूप से शामिल रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने विभिन्न सार्वजनिक और निजी संस्थाओं के साथ मिलकर मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) और ड्रोन प्रौद्योगिकी में देश की क्षमताओं को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कई स्टार्टअप और कंपनियां विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए यूएवी के नवाचार और उत्पादन में योगदान दे रही हैं। भारत ड्रोन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में संयुक्त विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग में भी लगा हुआ है। ड्रोन एक व्यापक शब्द है जिसका उपयोग ऐसे विमान को संदर्भित करने के लिए किया जाता है जो बिना मानव पायलट के संचालित होता है। 

ड्रोन पहली बार प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक सेना में दिखाई दिए और मुख्य रूप से टोह के लिए उपयोग किए गए। सैन्य अभियानों में ड्रोन युद्ध तेजी से प्रचलित हो गया है। उन्होंने पाकिस्तान और अफगानिस्तान में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा आतंकवाद विरोधी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच सशस्त्र संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाई है और यूक्रेन-रूस संघर्ष में भी दोनों पक्षों द्वारा बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है।

भारत ने पहली बार 1990 के दशक में इज़राइल से निगरानी ड्रोन प्राप्त करके अपनी ड्रोन युद्ध क्षमता विकसित करना शुरू किया। वास्तव में स्वदेशी ड्रोन युद्ध क्षमता विकसित करना भारतीय सेना के लिए एक पहली आवश्यकता थी। ध्यान रहे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वायत्त तकनीक ड्रोन युद्ध में और क्रांति लाएगी। ऐसे में दुश्मन के ड्रोन हमलों से सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। स्वदेशी क्षमता विकास एक आवश्यकता है। इससे दुश्मनों के ड्रोन पर कार्रवाई काफी आसान हो जाएगी।

Edited By: Ballia Tak

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