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एआई पर समझौता
कृत्रिम मेधा (एआई) तकनीक की गति और पहुंच अभूर्तवपूर्व है, मगर उसके साथ एआई और उसकी संचालन व्यवस्था में खाई भी बढ़ती जा रही है। एआई से संबंधित जोखिम अनेक हैं। दुनिया में इसे लेकर तमाम तरह की आशंकाएं सामने आने लगी हैं। आशंका जताई जा रही है कि एआई मानव सभ्यता के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने एआई की सफलताओं से सामंजस्य बिठाने के लिए तेजी से काम करने की आवश्यकता को लेकर आगाह किया। शिखर वार्ता की उपलब्धियों की बात की जाए तो कहा जा सकता है कि सुरक्षा शिखर वार्ता की उपलब्धियां अत्याधुनिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में तेज प्रगति से पैदा होने वाले जोखिमों को नियंत्रित करने की दौड़ में मानवता के पक्ष में संतुलन बनाएगी।
शिखर वार्ता में अमेरिका तथा चीन समेत 28 देशों के बीच एआई के खतरों को लेकर साझा समझौते और जिम्मेदारी के प्रति काम करने और अगले साल दक्षिण कोरिया तथा फ्रांस में और बैठकें करने के लिए सहमति बनी है। वास्तव में हम एक ऐसे युग में हैं जहां सार्वजनिक सेवाओं को बढ़ाने के लिए सरकारों को एआई और प्रौद्योगिकी की क्षमता बढ़ाना आवश्यक हो गया है।
सुरक्षा, विश्वास और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए भी सभी समान विचारधारा वाले देशों के बीच आम सहमति बढ़ रही है। फिर भी प्रौद्योगिकीविदों और राज नेताओं के कथन को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है कि अगर इस पर नियंत्रण के कदम नहीं उठाए गए तो इसके जोखिमों में उपभोक्ता की गोपनीयता खत्म करने से लेकर वैश्विक तबाही तक शामिल है।
चीन का इसमें शामिल होना खास मायने लिए हुए है क्योंकि अमेरिका सहित कई देशों ने चीन पर एआई का इस्तेमाल कर जासूसी करने के आरोप भी लगाए हैं। भारत की बात की जाए तो विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एआई व्यय 2025 तक 11.78 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। जोखिमों से जूझने के साथ ही भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कहीं हम नवाचार की तेजी से विकसित हो रही दुनिया में पिछड़ न जाएं।